उत्तर प्रदेश के राज्य सभा की सीटों को लेकर होने वाला चुनाव एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष के बीच नाक की लड़ाई का रूप ले चुका है.
गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को हराया है, उसके बाद लखनऊ के सियासी गलियारे में सबसे बड़ा सवाल यही तैर रहा है- क्या बीजेपी उपचुनाव की हार का बदला ले पाएगी या समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को जिताकर बीएसपी को रिटर्न गिफ्ट दे पाएगी.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को पूरा भरोसा है कि समाजवादी पार्टी के विधायक बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को राज्य सभा भेजने में कामयाब होंगे.
हर संभव दांव चल रही है- अनौपचारिक बातचीत में वे कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी लगातार कोशिश कर रही है लेकिन हमलोग उनको उनके ही तरीके से हराने में कामयाब हो जाएंगे.
अखिलेश राहत में ज़रूर दिखते हैं लेकिन उन्हें मालूम है कि उप चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी हरसंभव दांव चल रही है.
वहीं, दूसरी ओर इसे पूरा विपक्ष बड़ी उम्मीदों से देख रहा है, लिहाजा विधायकों का गणित उन्हें लगातार परेशान भी कर रहा है और वे लगातार अपने विधायकों से मीटिंग में जुटे हैं. मौजूदा चुनाव में एक उम्मीदवार को राज्य सभा में भेजने के लिए 37 विधायकों के वोटों की ज़रूरत है.
जया बच्चन की उम्मीदवारी- नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल के भारतीय जनता पार्टी ज्वॉइन करने से समाजवादी पार्टी के खेमे में कुल 46 विधायक हैं, यानी जया बच्चन को राज्य सभा में भेजने के बाद पार्टी के नौ विधायक बचेंगे.
बहुजन समाज पार्टी के राज्य सभा के उम्मीदवार भीम राव आंबेडकर को जीत दिलाने के लिए 37 विधायकों में से पार्टी के पास अपने कुल 19 विधायक हैं. वहीं कांग्रेस विधानदल के नेता अजय कुमार लल्लू बताते हैं- हमारे सात के सात विधायक बीएसपी के उम्मीदवार को वोट देंगे और बीएसपी का उम्मीदवार राज्यसभा में पहुंच जाएगा.
भीतर गुटबाजी का फायदा- ऐसे में बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 35 विधायक होते हैं. यानी दो विधायकों की कमी तब भी बनी रहेगी जब इन उम्मीदवारों में कोई क्रॉस वोटिंग नहीं करे.
वहीं आख़िरी समय में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी के चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है, जिससे विपक्ष के विधायकों की संख्या 34 हो रही है. इसके साथ ही फ़िरोज़ाबाद के सिरसागंज से समाजवादी पार्टी के विधायक हरिओम यादव भी कई आपराधिक मामलों के चलते जेल में बंद हैं और उन्हें भी चुनाव में हिस्सा लेने की इजाज़त नहीं मिल पाई है.
ज़रूरी विधायकों से चार विधायक कम होने के साथ साथ एक आशंका सबके एकजुट बने रहने पर भी है. बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के विधायक अगर एकजुट भी रहे तो भी समाजवादी पार्टी के अंदर भीतरी गुटबाजी का फ़ायदा बीजेपी पूरी तरह से उठाने की कोशिश कर रही है.
डिनर डिप्लोमेसी- हालांकि चुनाव से 48 घंटे पहले लखनऊ के ताज होटल में डिनर डिप्लोमेसी के ज़रिए अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के साथ खड़े होकर किसी भीतरी गुटबाजी के खत्म होने के संकेत दिए हैं. इतना ही नहीं उनकी डिनर डिप्लोमेसी में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के आने से भी विपक्षी एकता को बल मिला है.
राजा भैया अपने साथ बाबागंज के विधायक विनोद सरोज को समाजवादी खेमे में लाने का भरोसा दिलाने में कामयाब रहे हुए.
अखिलेश की डिनर पार्टी का सारा आयोजन और व्यवस्था अमेठी के गौरीगंज से सपा विधायक राकेश सिंह ने की है, इसे देखते हुए राजा भैया के भरोसे को यकीन के तौर पर देखा जा रहा है.
अखिलेश भैया के साथ- राकेश सिंह और राजा भैया एक दूसरे राजदार माने जाते हैं, खुद राजा भैया ने डिनर पार्टी के दौरान कहा, “मैं अखिलेश भैया के साथ था, हूं और रहूंगा.”
यानी राजा भैया की भूमिका सबसे अहम होने जा रही है. अगर वे अपने साथ दो विधायकों का साथ विपक्ष को दिला पाए तो भीमराव आंबेडकर बहुजन समाज पार्टी की ओर से राज्य सभा में पहुंच जाएंगे.
हालांकि योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में भारतीय जनता पार्टी भी अपनी ओर से पूरा जोर लगाए हुए है. उनके एक विश्वस्त सहयोगी का कहना है कि डिनर पार्टी में जाना और बात है और विधानसभा के अंदर मतदान करना दूसरी बात है.
शिवपाल यादव की सक्रियता- इतना ही नहीं इस बात की कोशिश भी की जा रही है कि भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दलों में से कुछ विधायक चुनाव के दौरान अनुपस्थित हो जाएं. सूत्रों के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी, अखिल भारतीय समाज पार्टी और अपना दल के एक-एक विधायक आख़िरी समय में अनुपस्थित रह सकते हैं.
शिवपाल यादव की सक्रियता को देखते हुए विश्लेषकों की राय में अखिलेश को बीएसपी को रिटर्न गिफ्ट देने में कोई मुश्किल नहीं होगी. मौजूदा समीकरणों के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी अपने आठ उम्मीदवारों को आसानी से राज्यसभा में भेज सकती है.
मौजूदा विधानसभा में- अभी मौजूदा विधानसभा में सहयोगियों को साथ मिलाकर बीजेपी के पास 324 विधायकों के वोट हैं.
ऐसे में नौवें उम्मीदवार के तौर पर अनिल अग्रवाल को जीत दिलाने के लिए ज़रूरी वोटों से पार्टी के नौ वोट कम हैं.
अगर विपक्ष की रणनीति के तहत तीन विधायक अनुपस्थित भी रहे तो बीजेपी को दो निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन मिल रहा है. शिवपाल यादव के क़रीबी माने जाने वाले विजय मिश्रा ने बीजेपी को वोट देने की घोषणा की है, इसके अलावा अमनमणि त्रिपाठी का साथ भी बीजेपी को मिल रहा है.
छवियों की लड़ाई- बीजेपी खेमा भी दावा कर रहा है कि उनका कोई विधायक नहीं टूटेगा और कम से कम चार निर्दलीय विधायक उनका साथ देंगे.
इस दावे पर यकीन कर भी लिया जाए तो भी भारतीय जनता पार्टी को चार और विधायकों की ज़रूरत होगी.
यूपी से राज्यसभा के कुल 10 उम्मीदवार चुने जाने हैं.
इस चुनाव में बीजेपी का आठ सीट जीतना तय है लेकिन नौवीं सीट नहीं जीतने पर, छवियों की लड़ाई में दो सप्ताह के अंदर दूसरी बार उसे हार का सामना करना पड़ेगा.
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