चांद पर यान पहुंचाने वाले हम, विज्ञान के अलग-अलग प्रयोग करने वाले हम प्रगति के दौड़ के हिस्सेदार बन रहे है। विज्ञान, संस्कृति का मिलाप हमारे देश में दिखाई देता है। प्रगति की राह पर चलने वाले हम, प्रगत राष्ट्रों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने की बात करते है। हमेशा बदलाव की बात करने वाले हम भारतीय जब जाती-भेद की बात करते है, तब हमारी सोच पिछड़े जमाने की हो जाती है।
पहले से ही हमारा समाज जातीयों के जकड में फंसा है। ऊंच नीच का व्यवहार तो समाज में हमेशा से ही चलता आ रहा है। हमारे संस्कृति ने कभी दलितों को दिल से स्वीकार नहीं किया। झुठे रिवाजों ने ना दलितों को पुजा करने का हक़ दिया ना साथ में खाने और उठ़ने-बैठ़ने का।
कर्नाटक के रत्तेहाली के गांव में दलितों के लिए अजब नियम बनाए है। इस गांव के अनूसुचित जनजातियों तथा आदिवासीयों को चप्पल पहनने की पाबंदी है। इस कुप्रथा को रोकने के लिए रत्तेहाली के उपायुक्त अभिराम शंकर ने पहले एससी-एसटी जागृति समिति के बैठक में आवाज उठाई है।
रत्तेहाली में दलित बेरोजगार युवाओं को सक्षम बनाने के लिए सरकार ने राशन की दुकान चलाने की सहायताकी है। वहां के दलित लोगों के अनुसार इन दुकानों से गैर-दलित लोग सामान नहीं खरीदते थे, वहां पर भी भेदभाव होता है। यह बात उन्होंने येलवाला पुलिस को बताई लेकिन पुलिस ने कोई सहकार्य नहीं किया। बल्कि पुलिस ने वहां के गैर-दलितों का साथ देकर उनके लिए अलग से दुकान प्रस्थापित की।
गांव के लोगों ने ऊंच नीच के बर्ताव पर विरोध करना शुरु किया है। चप्पल की मनाई, अलग से राशन की दुकान ऐसी अनेक बातें आज भी हमारे देश में दलितों के साथ हो रही है। प्रगति तो हम हर क्षेत्र में कर रहे है लेकिन पता नहीं जाती-धर्म के भेदभाव हम कब मिटाएंगे। क्योंकि जब धर्म-जाती, भेदभाव खत्म होगा तभी हमारा देश सही तरिके से विकसित होगा।
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