भारत के आझादी का इतिहास वैसे तो बहुत ही कर्तृत्व से भरा और खौफनाक रहा है. भारत के स्वतंत्र सेनानिओं ने अपनी जान निछावर करके इस देश को आझाद किया. १५ अगस्त १९४७ को देश आझाद तो हुआ लेकिन खुद के तुकडे करके. भारत को मिलनेवाली आझादी वैसे तो खुशहाली भरी थी लेकिन भारत का विभाजन उतना ही दुखभर था. भारत के विभाजन को लेकर इतिहासकारों ने तमाम किताबें लिखी हैं, जिसमें उस काल की घटनाओं का अपने-अपने दृष्टिकोण के हिसाब से वर्णन किया गया है.
भारत विभाजन के बाद महात्मा गांधी की हत्या हुई. नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि कि गांधी ने भारत के विभाजन का वैसा विरोध नहीं किया, जैसा वो कर सकते थे. लेकिन समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया की किताब ‘भारत विभाजन के गुनहगार’ में इस बात का जिक्र आता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को बंटवारे के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी थी.
इस किताब में लोहिया ने कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की उस बैठक का विस्तार से जिक्र किया हैं जिसने देश की विभाजन योजना को स्वीकृति दी. लोहिया के मुताबिक इस बैठक में गांधी ने नेहरू और पटेल से शिकायती लहजे में कहा था कि उन्हें बंटवारे के बारे में सही जानकारी नहीं दी गई. इसके जवाब में नेहरू ने महात्मा गांधी की बात को बीच में ही काटते हुए कहा था कि उन्होंने, उन्हें बराबर सूचना दी थी. लहकी लोहिया की किताब कितना सच बोलती है यह संशोधन का विषय है.
लोहिया के मुताबिक अगर नेहरू और पटेल ने गाँधी से कोई बात छुपाई ऐसी सच्चाई है तो नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने का आग्रह किसका था और उसके लिए मोहम्मद अली जीना को रास्ते से हटाने के लिए भारत के विभाजन की संकल्पना किसकी थी और तो और विभाजन के दौर में पाकिस्तान को ५५ करोड़ देने के लिए अनशन पे कौन बैठे ये सब बाते भी हमें ध्यान में लेनी चाहिए.
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